chhattisgarh history notes in hindi – about funi naag vansh
कवर्धा का फणिनाग वंश
छत्तीसगढ़ की एक शाखा फणिनाग वंश ने 9 वीं से 15वीं सदी तक कवर्धा के आस पास शासन किया । ये अपनी उत्पत्ति अहि एवं जतकर्ण ऋषि की कन्या मिथिला से मानते है, जिस वजह से इस वंश को अहि-मिथिला वंश भी कहते है। इस वंश के संस्थापक अहिराज थे। यह वंश कलचुरीवंश की प्रभुसत्ता स्वीकार करता था । इस वंश के शासको ने मड़वा महल , भोरमदेव मंदिर आदि का निर्माण कराया ।
फणीनांगवंश के प्रमुख शासक:-
गोपालदेव – ये इस वंश के 6 वे राजा थे।कल्चुरि शासक पृथ्वीदेव प्रथम के अधीन शासन किया। इनके शासन काल में भोरमदेव मंदिर का निर्माण(1089 ई.) जो 11 वीं सदी में हुआ।यह खजुराहो के मंदिर से प्रेरित है इस लिए इसे छत्तीसगढ़ का खजुराहों कहते हैं । नागर शैली (चंदेल शैली ) में निर्मित है। भोरमदेव एक आदिवासी देवता है ।
रामचंद्र देव – इनका विवाह कलचुरि राजकुमारी अम्बिका देवी से हुआ। इनके विवाह के लिए मड़वा महल (दल्हा देव : 1349) का निर्माण किया गया था।यह एक शिव मंदिर है । जिसे विवाह का प्रतिक माना जाता है । जिसे दुल्हादेव भी कहते हैं ।
मोनिंगदेव – शासन काल (1402 – 1414) इन्हें अंतिम शसक माना जाता है। कलचुरि शासक ब्रम्हदेव ने इन्हें पराजित किया।